iGrain India - नई दिल्ली । रिकॉर्ड बिजाई क्षेत्र एवं अनुकूल मौसम के कारण चालू रबी सीजन के दौरान सरसों का घरेलू उत्पादन शानदार होने के आसार हैं। इससे विदेशी खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कुछ घट सकती है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) के कार्यकारी निदेशक का कहना है कि इस बार किसानों ने सरसों का क्षेत्रफल बढ़ाकर 100.40 लाख हेक्टेयर के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा दिया है जबकि लगभग सभी प्रमुख उत्पादक प्रांतों में फसल अभी तक अच्छी हालत में है।
उद्योग समीक्षकों के अनुसार 2022-23 सीजन के दौरान देश में लगभग 115 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था जबकि 2023-24 सीजन के दौरान इसमें 3 से 5 लाख टन तक की अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है।
जयपुर के एक अग्रणी व्यापारी अनिल चतर के अनुसार सरसों फसलों की हालत उत्सावर्धक है। यदि अगले दो-तीन सप्ताहों तक मौसम अनुकूल रहा और फसल को किसी प्राकृतिक आपदा का सामना नहीं करना पड़ा तो इसका उत्पादन बढ़कर 120 लाख टन तक पहुंच सकता है।
लेकिन कुछ इलाकों में तापमान बढ़ना शुरू हो गया है जिससे चिंता बढ़ सकती है। पिछले सप्ताह तक मौसम ठीक-ठाक था। वैसे चालू सप्ताह के दौरान कुछ क्षेत्रों में हल्की बारिश हुई और तापमान में गर्मी कम हो गई।
पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी होने तथा ठंडी हवा चलने से मैदानी इलाकों में भी मौसम कुछ हद तक ठंडा हो गया है। राजस्थान के कुछ जिलों से उच्चतम तापमान सामान्य स्तर से करीब 6 डिग्री सेल्सियस ऊंचा हो गया।
अनिल चतर के मुताबिक सरसों की नई फसल की छिटपुट आवक पहले ही शुरू हो चुकी है जबकि अगले महीने (मार्च) से इसकी रफ़्तार जोर पकड़ने लगेगी।
सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले साल के 5450 रुपए प्रति क्विंटल से 200 रुपए बढ़ाकर इस वर्ष 5650 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है लेकिन थोक मंडी भाव इससे काफी नीचे चल रहा है।
अगर जल्दी ही सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई तो सरसों का दाम घटकर और भी नीचे जा सकता है। सरसों तेल का भाव गिरने से मिलर्स को तथा रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद से व्यापारियों-स्टॉकिस्टों को किसानों से ऊंचे दाम पर सरसों खरीदने का प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। उत्पादकों को औने-पौने दाम पर अपनी सरसों बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा है।