iGrain India - नई दिल्ली। आंध्र प्रदेश अथॉरिटी फॉर एडवांस रुलिंग्स (एएआर) ने अपने एक आदेश में कहा है कि साबुत दलहन की भूसी उतारकर तथा उसे विभाजित करके प्रसंस्कृत दाल का निर्माण किया जाता है इसलिए यह साबुत दलहन नहीं रह जाती है और न ही उसे प्रत्यक्ष कृषि उत्पाद माना जा सकता है। इसके फलस्वरूप प्रोसेस्ड दाल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की 18 प्रतिशत की दर वाली श्रेणी में शामिल मानी जाएगी। इसके अलावा थोक विक्रेताओं (होलसेलर्स) और मिलर्स या उत्पादकों के बीच कारोबार की सुविधा के लिए कृषि उत्पादों पर वसूली जानी वाली दलाली पर भी 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी मान्य होगा। यह मामला आंध्र प्रदेश की एक फार्म से जुड़ा हुआ है। यह फार्म उड़द दाल, मूंग दाल एवं तुवर दाल तथा इसके अवयवों जैसे कृषि उत्पादों में दलाल का काम करती है और सम्बंधित पार्टियों से प्रत्येक बोरी दाल के लिए एक नियत मूल्य वसूलती है।
दिलचस्प तथा यह है कि दाल कारोबार के खरीद या बिक्री वाले चालान में कहीं भी इस दलाली फार्म के नाम का उल्लेख नहीं होता है और केवल दलाली राशि के लिए यह पार्टियों को चालान देती है। यह कंपनी जीएसटी रजिस्ट्रेशन प्राप्त कर चुकी है और 18 प्रतिशत टैक्स कि वसूली भी करती है लेकिन समूचे देश की फार्मों द्वारा इसका विरोध किया जाता रहा है। होलसेलर्स एवं मिलर्स का कहना है कि कृषि उत्पादों और उसकी दलाली पर जीएसटी लागू नहीं है। इस प्रतिरोध को देखते हुए कंपनी ने एएआर से दिशा-निर्देश देने का आग्रह किया कि प्रोसेस्ड दालों पर वह जो 18 प्रतिशत का जीएसटी वसूलती है वह उचित (कानूनी) है या नहीं। एएआर ने माना कि साबुत दलहन के भूसे (छिल्के) को उतारने और उसे विभक्त करने की प्रक्रिया आमतौर पर किसानों द्वारा संचालित नहीं की जाती है और न ही खेतों पर ऐसी कोई गतिविधि होती है बल्कि यह कार्य दाल मिलर्स द्वारा किया जाता है। इसलिए प्रसंस्कृत (दली) दालों को प्रत्यक्ष कृषि उत्पाद नहीं माना जा सकता है। साबुत दलहन की कृषि उत्पाद की श्रेणी में आता है।