iGrain India - नई दिल्ली । भारत के पूर्वोत्तर पड़ोसी देश- म्यांमार से उड़द, तुवर एवं मूंग का नियमित रूप से अच्छा निर्यात हो रहा है। इसमें से उड़द एवं तुवर का अधिकांश भाग भारत को भेजा जा रहा है जबकि मूंग का निर्यात अन्य देशों से किया जाता है।
दरअसल म्यांमार के दलहन उत्पादकों की आर्थिक स्थिति ज्यादा मजबूत नहीं है और न ही दलहनों के स्टॉक को अधिक समय तक अपने पास रोककर रखने की क्षमता है।
मौद्रिक उतार-चढ़ाव के कारण निर्यातकों का बजट भी कमजोर रहता है इसलिए किसान व्यापारियों / निर्यातकों को इस निर्यातक विदेशी आयातकों को नियमित रूप से दलहनों की आपूर्ति (बिक्री) करते रहते हैं। वे इसका स्टॉक रखने का प्रयास नहीं करते हैं। चालू वर्ष के दौरान भी यहां स्थिति देखी जा रही है।
एक निर्यातक संगठन के आंकड़ों से पता चलता है कि कहलू कैलेंडर वर्ष की पहली छमाही में यानी जनवरी से जून 2024 के दौरान म्यांमार से 4,60,729 टन उड़द, 1,89,708 टन अरहर (तुवर) तथा 3,88,136 टन मूंग क निर्यात हुआ। इस तरह आलोच्य अवधि के दौरान वहां से इन तीन प्रमुख दलहनों काकुल निर्यात 10,38,573 टन पर पहुंच गया।
भारत में उड़द का सर्वाधिक आयात म्यांमार से होता है जबकि तुवर का आयात भी वहां से बड़े पैमाने पर किया जाता है। वैसे तुवर का भारी आयात अफ्रीकी देशों और खासकर मोजाम्बिक, मलावी तथा सूडान आदि से भी किया जाता है। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया एवं कनाडा से मसूर एवं रूस तथा कनाडा से पीली मटर का विशाल आयात हो रहा है।
म्यांमार के निर्यातक उड़द एवं तुवर का अनुबंध के लिए भारतीय बाजार में कीमतों में तेजी-मंदी पर गहरी नजर रखते हैं और तदनुरूप अपने स्टॉक का दाम घटते बढ़ाते रहते हैं। इससे भारतीय आयतकों की परेशानी होती है।
म्यांमार के निर्यातक संगठन - ओवरसीज एग्री ट्रेडर्स एसोसिएशन (ओ ए टी ए) के अधिक का कहना है कि म्यांमार से प्रति माह 60-65 हजार टन दलहन का निरत भारत को किया जाता है।
चालू वर्ष के दौरान म्यांमार से भारत को दलहनों का निर्यात पिछले तीन साल के औसत शिपमेंट से करीब 50 प्रतिशत ज्यादा हुआ है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में म्यांमार से वर्ष 2021-22 में 6.60 लाख टन उड़द एवं 2.10 लाख टन तुवर का आयात हुआ था जबकि 2022-23 में उड़द का आयात घटकर 5.10 लाख टन रह गया मगर तुवर का आयात कुछ बढ़कर 2.40 लाख टन हो गया। 2023-24 में उड़द का आयात बढ़कर 6.30 लाख टन पर पहुंच गया जबकि तुवर का आयात 2.40 लाख टन पर ही स्थिर रहा।