iGrain India - नई दिल्ली । केन्द्र सरकार ने मार्च 2027 के अंत तक देश को दाल-दलहन के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा है और केन्द्रीय कृषि मंत्रालय उसे हासिल करने के लिए नई-नई रणनीति भी तैयार कर रहा है
लेकिन व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि यह महत्वकांक्षी लक्ष्य महज 3-4 साल में प्राप्त करना आसान नहीं होगा। हालांकि यह असंभव भी नहीं है लेकिन इसकी प्राप्ति के लिए अत्यन्त गंभीर एवं समेकित प्रयास आवश्यकता है।
दलहनों का बिजाई क्षेत्र तो अत्यन्त विशाल रहता है और देश में खरीफ, रबी तथा जायद- तीनों सीजन में इसकी खेती होती है लेकिन प्रति हेक्टेयर औसत उपज दर बहुत नीचे रहने से कुल उत्पादन अपेक्षित स्तर तक नहीं पहुंच पाता है।
कम उत्पादकता दर का एक प्रमुख कारण यह है कि देश में दलहनों की अधिकांश खेती वर्षा पर आश्रित क्षेत्रों में होती है और बारिश की कमी या अधिकता से फसल प्रभावित होती रहती है।
पिछले साल अगस्त में देश के अंदर भयंकर सूखा पड़ा था जिससे तुवर एवं उड़द की फसल को काफी नुकसान हुआ था। इसी तरह सितम्बर- अक्टूबर में जोरदार बारिश होने से तुवर की फसल प्रभावित हुई थी। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा से दलहन फसलों को नुकसान होता रहता है।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने राज्यों से कहा है कि धान की कटाई के बाद खाली होने वाले खेतों में दलहन फसलों की बिजाई करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जायें। इससे दलहनों के क्षेत्रफल में और बढ़ोत्तरी हो सकती है।
सरकार ने दलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी काफी बढ़ा दिया है ताकि किसानों को उत्पादन बढ़ाने का प्रोत्साहन मिल सके। उसके साथ-साथ तुवर, उड़द एवं मसूर की 100 प्रतिशत खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर करने का निर्णय लिया गया है। दलहनों का थोक मंडी भाव भी काफी ऊंचा चल रहा है।