iGrain India - नई दिल्ली । चालू खरीफ सीजन के दौरान कुछ राज्यों में किसानों द्वारा अन्य फसलों की खेती को विशेष प्राथमिकता दिए जाने से कपास के बिजाई क्षेत्र में गिरावट आने के संकेत मिल रहे हैं।
इसमें गुजरात तथा उत्तरी भारत के कुछ भाग शामिल हैं जहां कपास की बिजाई काफी कम क्षेत्रफल में हुई है। इन इलाकों में किसान उन फसलों को तरजीह दे रहे हैं जिसमें उन्हें बेहतर आमदनी प्राप्त होने की उम्मीद है।
ध्यान देने की बात है कि गुजरात भारत का सबसे प्रमुख कपास (रूई)उत्पादक उत्पादक राज्य है। वहां बिजाई क्षेत्र एवं उत्पादन घटने पर रूई के कुल घरेलू उत्पादन में भी कमी आ सकती है।
एक अग्रणी संस्था- कोटों एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष के अनुसार गुजरात में कपास के बिजाई क्षेत्र में इस बार 12 से 15 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
उधर राजस्थान हरियाणा तथा पंजाब में क्षेत्रफल 40 -50 प्रतिशत तक घटने की संभावना है। राजस्थान के कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में इस बार 2 जून तक कपास का क्षेत्रफल केवल 4.45 लाख हेक्टेयर पर पहुंच सका जबकि पिछले साल यह 7.33 लाख हेक्टेयर के करीब रहा था।
उत्तरी राज्यों में कपास का रकबा 20-25 प्रतिशत पहले ही घट चुका है जबकि गुजरात में 15 प्रतिशत घटने की संभावना है। किसान इस कपास के बजाए मक्का तथा मूंगफली जैसी फसलों की खेती पर विशेष जोर दे रहे हैं।
मूंगफली की खेती से किसानों को करीब 50-60 हजार रुपए प्रति एकड़ की आमदनी होती है जबकि कपास की खेती से महज 20-22 हजार रुपए की ही आय प्राप्त होती है।
दुरी ओर तेलंगाना एवं महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कपास के उत्पादन क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होने के संकेत मिल रहे हैं। तेलंगाना में लालमिर्च के कुछ उत्पादक इस बार कपास की तरफ मुड़ गए है।
लेकिन गुजरात में बिजाई कम होने से कपास के उत्पादन में आने वाली गिरावट की भरपाई होना मुश्किल है। रूई के कुल घरेलू उत्पादन में अकेले गुजरात का योगदान 35 प्रतिशत के आसपास रहता है। इसके बाद महाराष्ट्र एवं तेलंगाना का नंबर आता है।