iGrain India - चंडीगढ़ (भारती एग्री एप्प)। उत्तरी भारत के तीनों प्रमुख उत्पादक राज्यों- पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में कपास की फसल पर गुलाबी सूंडी (पिंक बॉलवर्म) कीट का प्रकोप देखा जा रहा है।
कहीं पर प्रकोप भयंकर रूप ले चुका है तो कहीं इसकी तीव्रता कम देखी जा रही है। कृषि विभाग की सप्ताह के अनुसार किसान कपास की फसल पर कीटनाशी रसायनों का छिड़काव कर रहे हैं मगर इसका ज्यादा असर पड़ता नहीं दिख रहा है।
वैसे भी इस बार खासकर पंजाब एवं राजस्थान में कपास के बिजाई क्षेत्र में काफी गिरावट आई है और फसल पर कीड़ों का आयात बढ़ने से किसान काफी चिंतित है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजाब में मनसा, फाजिल्का एवं अबोहर तथा राजस्थान में श्री गंगानगर, हनुमानगढ़ तथा अनूपगढ़ जैसे जिलों में कपास की फसल पर पिंक बॉलवर्म कीट का प्रकोप ज्यादा देखा जा रहा है।
हरियाणा के कुछ सीमावर्ती जिलों में भी इस कीट का आघात होने की सूचना मिल रही है। ध्यान देने की बात है कि इन राज्यों में कपास की अगैती खेती होती है और अप्रैल-मई के दौरान बिजाई की जाती है।
पौधे अभी प्रगति के विभिन्न चरण में हैं मगर उसमें फूल लगने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है जबकि उससे पहले ही उस पर कीड़ों का हमला आरंभ हो गया है।
कुछ क्षेत्रों में कीड़ों का फैलाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि किसानों ने कपास के संक्रमित पोधो को उखाड़ कर फेंक दिया है और खेतों की दोबारा जुताई कर दी है।
अन्य क्षेत्रों में कीड़ों-रोगों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशी रसायनों का छिड़काव करना पड़ रहा है जिससे किसानों के लागत खर्च में बढ़ोत्तरी हो रही है।
मोटे अनुमान के अनुसार एक एकड़ में रसायनों के छिड़काव पर करीब 2 हजार रुपए का खर्च बैठता है। इस तरह जिस किसान को 10 एकड़ में इसका छिड़काव करना है उसे 20 हजार रुपए खर्च करना पड़ रहा है।
अन्य खर्च इससे अलग है। सरकार ने रूई का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो बढ़ा दिया है मगर इसका खुला बाजार भाव ज्यादा आकर्षक नहीं है।
पंजाब में पिछले चार साल से कपास के बिजाई क्षेत्र में लगातार गिरावट देखी जा रही है लेकिन वहां किसानों में इसके प्रति उत्साह एवं आकर्षण काफी घट गया है। चालू वर्ष के दौरान राज्य में कपास का उत्पादन क्षेत्र घटकर एक लाख हेक्टेयर से भी नीचे आ गया है।