iGrain India - चंडीगढ़ । कीड़ों-रोगों के घातक प्रकोप से कपास की फसल को होने वाले भारी नुकसान के कारण उत्तरी राज्यों के किसाओं का उत्साह एवं आकर्षक इस महत्वपूर्ण औद्योगिक फसल की खेती के प्रति इस बार काफी घट गया है।
इसके फलस्वरूप तीनों प्रमुख उत्पादक प्रांतों- राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में कपास के बिजाई क्षेत्र में जबरदस्त गिरावट आ गई है।
पंजाब में अनुपातिक रूप से क्षेत्रफल में सबसे ज्यादा गिरावट आई है और वहां किसान अब कपास के बजाए धान की खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसी तरह राजस्थान में भी नरमा कपास के रकबे में भारी कमी आई है।
पंजाब के मालवा संभाग में कपास की फसल को हमेशा पिंक बॉलवर्म तथा व्हाईट फ्लाई जैसे कीट से भयंकर खतरा बना रहता है।
इससे फसल काफी हद तक बर्बाद हो जाती है और रूई का भाव नीचे होने से उत्पादकों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है।
इसके मुकाबले वहां धान की फसल को सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसकी सरकारी खरीद निश्चित रूप से होती है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्तमान खरीफ सीजन के दौरान जुलाई के प्रथम सप्ताह तक पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान में संयुक्त रूप से कपास का उत्पादन क्षेत्र घटकर 10.23 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया जो पिछले साल की समान अवधि के बिजाई क्षेत्र 16 लाख हेक्टेयर से करीब 6 लाख हेक्टेयर कम है।
पंजाब में बिजाई की हालत सबसे कमजोर रही। वहां क्षेत्रफल घटकर महज 97 हजार हेक्टेयर के आसपास रह गया जबकि 80 तथा 90 के दशक में वहां इसका सामान्य औसत क्षेत्रफल 7.58 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया था।
इसी तरह राजस्थान में कपास का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के 8.35 लाख हेक्टेयर से लुढ़ककर इस बार 4.75 लाख हेक्टेयर तथा हरियाणा में 5.75 लाख हेक्टेयर से घटकर 4.50 लाख हेक्टेयर पर अटक गया है।
कपास के क्षेत्रफल में आई गिरावट से जो खेत खाली होगा उसमें किसान धान एवं मक्का सहित कुछ अन्य फसलों की खेती कर सकते हैं। उधर देश के सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त-गुजरात में भी कपास का रकबा घटने की संभावना है।