iGrain India - अहमदाबाद । देश के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य- गुजरात में इस बार कपास की खेती में किसानों का उत्साह एवं आकर्षण कम देखा जा रहा है।
हालांकि बिजाई क्षेत्र की दृष्टि से कपास अब भी गुजरात की सबसे बड़ी एक फसल बनी हुई है मगर इसका उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के 26.24 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 22 जुलाई तक 22.34 लाख हेक्टेयर पर पहुंच सका जो पिछले तीन वर्षों के सामान्य औसत क्षेत्रफल 24.95 लाख हेक्टेयर का 89.54 प्रतिशत है।
कुछ क्षेत्रों में कपास की बिजाई अभी जारी है। गुजरात में सौराष्ट्र संभाग के 11 जिलों में कपास और मूंगफली की सर्वाधिक खेती होती है मगर वहीँ इस बार कपास के बिजाई क्षेत्र में अधिक गिरावट आई है।
सौराष्ट्र संभाग में अमरेली तथा राजकोट जिले में कपास का उत्पादन क्षेत्र काफी घट गया है। इसका रकबा अमरेली जिला में 3.65 लाख हेक्टेयर से घटकर 2.98 लाख हेक्टेयर तथा राजकोट जिला में 2.44 लाख हेक्टेयर से गिरकर 1.81 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया है। उत्तरी गुजरात के पांच-छह जिलों में भी ऐसी ही स्थिति देखी जा रही है।
वहां कपास का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष के 2.35 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 1.81 लाख हेक्टेयर रह गया है। अमरेली के जिला कृषि अधिकारी का कहना है कि पिछले तीन वर्षों के दौरान किसानों द्वारा गैर प्रमाणित बीजों की अधिक बिजाई किए जाने से कपास की फसल पर गुलाबी सूंडी (पिंक बॉलवर्म) कीट का प्रकोप बना रहा,
कपास की खेती एकल फसल पद्धति से की गई और मानसून की वर्षा देर से तथा कम हुई जिससे औसत उपज दर प्रभावित हुई।
इसके फलस्वरूप चालू खरीफ सीजन में अनेक किसानों ने या तो कपास की खेती बंद कर दी या इसका रकबा घटा दिया। पिछले दो वर्षों से रूई का बाजार मूल्य भी 7000 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा है जो किसानों की उम्मीद (10,000 रुपए प्रति क्विंटल) से काफी नीचे है।
कपास की फसल छह महीने में तैयार होती है जबकि मूंगफली की फसल के कटाई के लिए तैयार हों में 100-120 दिनों का ही समय लगता है।
केन्द्र सरकार ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मध्यम रेशेवाली किस्म के लिए 6620 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 7121 रुपए प्रति क्विंटल तथा लम्बे रेशेवाली श्रेणी के लिए 7020 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 7521 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। उत्तरी राज्यों में भी कपास के क्षेत्रफल में भारी गिरावट आई है।