iGrain India - दक्षिण-पश्चिम मानसून इस वर्ष कुछ खास राज्यों पर जरूरत से ज्यादा मेहरबानी दिखा रहा है जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश आदि शामिल हैं। दूसरी ओर झारखंड, उड़ीसा, बिहार, पंजाब, हरियाणा एवं केरल सहित नौ राज्यों में मानसून का प्रदर्शन कमजोर चल रहा है और वहां सामन्य औसत से कम बारिश हुई है।
मानसून का मिजाज पिछले साल की तुलना में इस बार कुछ बदला हुआ सा नजर आ रहा है। गत वर्ष महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं गुजरात में भयंकर सूखा पड़ा था जिससे न कवल खरीफ फसलों का बिजाई क्षेत्र घट गया था बल्कि इसके उत्पादन में भी कमी आ गई थी।
इसके विपरीत इस बार वहां अत्यन्त मूसलाधार बारिश हो रही है और कई इलाकों में बाढ़ का तांडव भी देखा जा रहा है। इसके फलस्वरूप पूर्व में बोई गई फसलों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न होने की आशंका है।
राष्ट्रीय स्तर पर मानसून की कुल वर्षा तो दीर्घकालीन औसत के करीब पहुंच गई है मगर इसका वितरण असमान होने से देश में अजीबो गरीब स्थिति पैदा हो गई है।
वहीँ जोरदार वर्षा एवं नदियों में आई उफान के कारण बाढ़ से फसलें प्रभावित हो रही हैं तो कहीं वर्षा की कमी एवं तेज गर्मी से फसलों को क्षति पहुंचने की संभावना बन रही है।
हालांकि केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 812 लाख हेक्टेयर के करीब पहुंच गया है जो पिछले साल की इसी अवधि के बिजाई क्षेत्र लगभग 794 लाख हेक्टेयर से तकरीबन 18 लाख हेक्टेयर ज्यादा है
लेकिन जिन इलाकों में प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों को हानि हो रही है उसे उत्पादन आंकड़ों के निर्धारण हेतु क्षेत्रफल में शामिल करना मुनासिब नहीं होगा।
ध्यान देने की बात है कि बिहार, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड जैसे राज्यों में मानसून की कम वर्षा होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर धान का उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष से पीछे हो गया है।
इसी तरह कपास की बिजाई में भारी गिरावट आ गई है लेकिन दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाजों के रकबे में अच्छी बढोत्तरी देखी जा रही है।
मौसम विभाग ने देश के 18 राज्यों में मूसलाधार वर्षा एवं भयंकर बाढ़ की चेतावनी दी है। अगर अगस्त में भी मानसून की जोरदार वर्षा का दौर जारी रहा तो खरीफ फसलों के लिए फिर लाभ-हानि के समीकरण का अनुमान लगाना कठिन हो जाएगा।