iGrain India - नई दिल्ली (भारती एग्री एप्प)। कुछ अग्रणी कृषि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी तथा कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र की विकास दर के बारे में चाहे जो भी दावे किए जाएं लेकिन हकीकत यह है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान इसका प्रदर्शन कमजोर रहा है।
इसका स्पष्ट संकेत सरकार की आयात निर्यात नीति में जल्दी-जल्दी होने वाले व परिवर्तन से मिलता है। खाद्य तेलों का आयात नए-नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच रहा है जबकि दलहनों के आयात की जरोदार बढ़ोत्तरी हो रही है।
दूसरी ओर ग़ैर बासमती सफेद चावल एवं 100 प्रतिशत टूटे चावल, गेहूं एवं इसके मूल्य संवर्धित उत्पाद तथा चीनी आदि के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
सरकारी उपायों के बावजूद खाद्य महंगाई में इजाफा हो रहा है जिसका प्रमुख कारण आपूर्ति पक्ष का काफी कमजोर होना माना जा रहा है। उत्पादन घटने से आपूर्ति कम हो रही है।
सरकार दलहन-तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने का इरादा रखती है और इसके लिए राष्ट्रीय तिलहन मिशन को पुनः सक्रिय बनाने की घोषणा की गई है।
फरवरी में अंतरिम बजट के दौरान सोयाबीन, सरसों, मूंगफली, तिल एवं सूरजमुखी के उत्पादन संवर्धन हेतु नई नीति बनाने पर जोर दिया गया था और अब जुलाई के फ़ाइनल बजट में भी इसकी चर्चा की गई।
दलहनों की पैदावार बढ़ाने का प्रयास ही रहा है और वर्ष 2027 के अंत तक सरकार ने इसमें आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया है। दलहनों एवं खाद्य तेलों आयात पर प्रति वर्ष अरबों डॉलर खर्च हो रहे हैं जिससे निर्यातक देशों की तिरोरियां भर रही हैं।
पिछले एक दशक के दौरान दलहन-तिलहन फसलों के घरेलू उत्पादन में काफी उतार-चढ़ाव का माहौल बना रहा मगर दालों एवं खाद्य तेलों की मांग एवं खपत निरन्तर बढ़ती जा रही। इससे मांग एवं आपूर्ति के बीच अंतर भी बढ़ता गया। अब यह गंभीर समस्या का रूप ले चुका है।
सरकार परोक्ष रूप से अंतर को पाटने पर विशेष ध्यान दे रही है जिससे प्रत्यक्ष रूप से होने उपाए पीछे छूट गया है। इन प्रत्यक्ष उपायों के लिए विशाल धनराशि की जरूरत पड़ेगी और इसके लिए सरकार को अतिरिक्त प्रयास करना चाहिए।