iGrain India - कीव । भारत में धान-चावल के उत्पादन को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि आसाम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा तमिलनाडु में इसकी उपज दर के लिए जलवायु का जोखिम सबसे ज्यादा रहने की संभावना है।
विशेषज्ञों द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार, झारखंड तथा उत्तराखंड जैसे राज्यों को जलवायु परिवर्तन के जोखिम का सबसे कम सामना करना पड़ेगा।
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में बिजली का चार्ज बढ़ाए जाने से किसानों को परेशानी होगी।
फसलों और खासकर धान की सिंचाई के लिए इलेक्ट्रिक पम्प का उपयोग बड़े पैमाने पर नहीं हो रहा था क्योंकि किसानों के लिए बिजली का बिल माफ़ कर दिया गया था।
लेकिन अब आपूर्ति के वास्तविक खर्च तक बिजली चार्ज (शुल्क) वसूला जाएगा। इससे इलेक्ट्रिक पम्प पानी की निकासी में 55-60 प्रतिशत तक की गिरावट आने की संभावना है।
ध्यान देने वाली बात है कि पंजाब केन्द्रीय पूल में धान-चावल का सर्वाधिक योगदान देने वाला राज्य है। वहां पानी का बेतहाशा उपयोग होने से जल स्तर काफी घट गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार धान चावल की उपज दर में गिरावट तो आएगी मगर इसका दायरा महज 11 प्रतिशत तक रह सकता है।
पंजाब सहित कुछ अन्य राज्यों में किसानों के लिए बिजली के बिल में भारी छूट दी जा रही है जिससे भूमि जल संसाधन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है।
इसका खर्च राज्य बिजली बोर्ड को उठाना पड़ताहै। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि सकल कारक उत्पादकता दर (टीएफपी) चावल तथा गेहूं के लिए लगभग स्थिर हो गई है
जबकि पिछले पांच दशकों में यानी वर्ष 1970-71 से 2019-20 के दौरान गंगा-सिंधु के मैदानी भाग में घट गई है। भारत दुनिया का दूसरा प्रमुख चावल उत्पादक देश है।