iGrain India - नई दिल्ली । खरीफ सीजन की सबसे प्रमुख दलहन फसल-अरहर (तुवर) की कीमतों में अक्सर चढ़ाव-उतार बना रहता है जिसका असर अन्य दलहनों के दाम पर भी पड़ता है। हालांकि भारत दुनिया में दलहनों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है लेकिन फिर भी विशाल घरेलू मांग एवं बढ़ती जरूरत को पूरा करने के लिए इसे विदेशों से भारी मात्रा में इसका आयात करना पड़ता है। देश में मुख्य रूप से तुवर, मसूर एवं उड़द का आयात किया जाता है। तुवर की खेती खरीफ सीजन में, मसूर की रबी सीजन में तथा उड़द की खेती दोनों सीजन में होती है।
समझा जाता है कि कुछ विशेष कारणों से पिछले कुछ महीनों से तुवर के घरेलू बाजार भाव में तेजी मजबूती का माहौल बना हुआ है।
सरकार को संदेह है कि उत्पादकों के साथ-साथ कुछ स्टॉकिस्ट भी तुवर का स्टॉक रोके हुए हैं और आयातकों का एक समूह ऐसा है जो निर्यातक देशों में अनुबंध करने के बावजूद तुवर की खेप को भारत में नहीं ला रहे हैं ताकि यहां कृत्रिम अभाव उत्पन्न हो, कीमतों में तेजी आए और फिर उन्हें ऊंचे दाम पर अपना माल बेचकर मोटे मुनाफा कमाने का अवसर मिल जाए। इसके अलावा तुवर के दाम में तेजी के कुछ अन्य कारण भी हैं जिसका पता लगाकर सरकार उसे दुरुस्त करने का प्रयास कर रही है।
सरकार ने हाल ही में एक सूचना जारी करके दलहनों (तुवर, उड़द एवं मसूर) की खरीद पर लगी उच्चतम मात्रात्मक सीमा को समाप्त करने की घोषणा की है। इसके साथ-साथ इन दलहनों (तुवर-उड़द) पर स्टॉक सीमा को सख्ती से लागू किया गया है और 2023-24 के खरीफ मार्केटिंग सीजन हेतु तुवर के न्यूनतम सर्मथन मूल्य में 400 रुपए प्रति क्विंटल तथा उड़द के समर्थन मूल्य में 350 रुपए प्रति क्विंटल का इजाफा किया गया है ताकि किसानों को इसका उत्पादन बढ़ाने का समुचित प्रोत्साहन मिल सके। सरकारी प्रयासों के कारण तुवर-उड़द के दाम में जोरदार तेजी आने पर तो ब्रेक लगा गया है मगर इसमें नरमी का माहौल नहीं बन पाया है।
म्यांमार से तुवर-उड़द का आयात हो रहा है मगर इसकी मात्रा सीमित है। उधर अफ्रीकी देशों में निर्यात योग्य तुवर का नगण्य स्टॉक बचा है और आपूर्ति का ऑफ सीजन चल रहा है। अगस्त-सितम्बर में जब वहां नई फसल आएगी तब भारत में इसका आयात तेजी से बढ़ेगा और फिर कीमतों पर दबाव पड़ना शुरू हो जाएगा।