iGrain India - मुम्बई । हालांकि हाल के महीनों में घरेलू प्रभाग में खाद्य तेलों का भाव नरम पड़ा है मगर वैश्विक बाजार के मुकाबले इसमें कम गिरावट आई है।
भारत खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश है और अक्सर कहा जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव का घरेलू खाद्य तेल बाजार पर सीधा और गहरा असर पड़ता है लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है या फिर सिर्फ कीमतों में वृद्धि तक यह सीमित है।
पिछले दो-तीन साल के दौरान भारतीय बाजार में खाद्य तेल के दाम में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई जिसका कारण लैटिन अमरीका में उत्पादन कमजोर होना, मलेशिया में कोरोना के कारण श्रमिकों का अभाव रहना तथा रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किया जाना आदि था।
इससे वनस्पति तेल उद्योग में कठिनाई बढ़ गई थी। बाद में हालात सामान्य हो गए। ब्राजील में सोयाबीन तथा इंडोनेशिया- मलेशिया में पाम तेल का स्टॉक बढ़ गया।
यूक्रेन से भी सूरजमुखी तेल का निर्यात आरंभ हो गया। पिछले एक साल से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड खाद्य तेल की कीमतों में शीर्ष स्तर के मुकाबले भारी गिरावट देखी जा रही है लेकिन घरेलू बाजार में इसके दाम में उसके अनुरूप गिरावट नहीं आई है।
वर्ष 2021-22 के दौरान देश में खाद्य तेलों की कुल खपत बढ़कर 258 लाख टन पर पहुंच गई जो एक दशक पूर्व के मुकाबले करीब 60 लाख टन अधिक थी।
भारत अपनी घरेलू मांग एवं जरुरत को पूरा करने के लिए विदेशों से विशाल मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करता है जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया एवं थाईलैंड से पाम तेल, रूस, यूक्रेन एवं अर्जेन्टीना से सूरजमुखी तेल तथा अर्जेन्टीना, ब्राजील एवं कुछ अन्य देशों से सोयाबीन तेल का आयात शामिल है। यहां सर्वाधिक आयात पाम तेल का होता है।
मई 2022 से मई 2023 के बीच अंतर्राष्ट्रीय बाजार में विभिन्न खाद्य तेलों के दाम में जोरदार गिरावट दर्ज की गई जबकि भारत में भाव ज्यादा नीचे नहीं गिरा।
मई 2022 से जुलाई 2023 के दौरान अंतर्राष्ट्रीय बाजार में क्रूड पाम तेल तथा आरबीडी पामोलीन के दाम में करीब 45 प्रतिशत की जरोदार गिरावट आई मगर भारत में वनस्पति (घी) का भाव केवल 21 प्रतिशत तथा पाम तेल का दाम 29 प्रतिशत ही घटा।
सोयाबीन तेल एवं सूरजमुखी तेल के मामले में भी ऐसा ही हुआ। सरकार द्वारा सीमा शुल्क में भारी कटौती किए जाने के बाद भी कोई विशेष कमी नहीं आई।