iGrain India - नई दिल्ली । चालू वर्ष के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसून काफी हद तक अंतिम मिल एवं अनिश्चित रहा है। जून में बारिश कम हुई अगर जुलाई में देश के अधिकतर भागों में काफी अच्छी वर्षा हुई जिसमें खरीफ फसलों की बिजाई में भारी सहायता मिली।
इसके बाद अगस्त में मानसून देश के अधिकांश भाग से गायब हो गया और तापमान भी काफी ऊंचा रहा जिससे कई इलाकों में विभिन्न खरीफ फसलों की हालत खराब हो गई। सितम्बर के प्रथम सप्ताह में मानसून वापस लौटा और देश के कई भागों में अच्छी बारिश हुई।
अब महाराष्ट्र एवं गुजरात सहित कई अन्य राज्यों में मानसून सीजन के दौरान कुल संचयी बारिश सामान्य औसत के काफी करीब पहुंच सकती है। लेकिन असली समस्या वर्षा के असमान वितरण की है जो कई क्षेत्रों में खरीफ फसलों के लिए घातक साबित हो रही है।
अल नीनो वाला वर्ष होने के बावजूद आधिकारिक तौर पर देश में कुल संचयी वर्षा दीर्घकालीन औसत से महज 10 प्रतिशत पीछे चल रही है जबकि अगस्त का महीना पिछले 100 वर्षों में सबसे ज्यादा सूखा एवं गर्म रहा।
सितम्बर की बारिश से कुछ फायदा हुआ है और कुल मौसमी वर्षा की कमी भी काफी हद तक पूरी हो गई। अभी जो वर्षा हो रही है वह मिश्रित प्रभाव वाली साबित होगी। जो अगैती फसलें कटाई-तैयारी के चरण में पहुंच गई हैं इसे उस वर्षा से नुकसान हो सकता है।
गत सप्ताह पंजाब के कुछ भागों में तेज हवा के साथ भारी वर्षा होने से कपास की फसल क्षतिग्रस्त हो गई मगर धान की फसल को फायदा हुआ। इसी तरह महाराष्ट्र एवं गुजरात में वर्षा होने से मूंग-उड़द की फसल को नुकसान होने की आशंका है जबकि तुवर एवं मूंगफली की फसल को फायदा हो सकता है। वर्षा से धान की फसल को हर जगह राहत मिलने की उम्मीद है जबकि गन्ना एवं मोटे अनाजों की फसल भी लाभान्वित होगी।
यद्यपि खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के लगभग बराबर हो गया है मगर दलहन फसलों का रकबा करीब 9 प्रतिशत पीछे रह गया और सूरजमुखी के बिजाई क्षेत्र में 65 प्रतिशत की भारी गिरावट आ गई। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश का आंकलन फसल की जीवनावधि के आधार पर होना चाहिए।