iGrain India - नई दिल्ली । चालू वर्ष के दौरान दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत अनिश्चित एवं अनियमित रही है जिससे देश के विभिन्न भागों में खरीफ फसलों को नुकसान हो रहा है। इस बार अगस्त का महीना पिछले सौ वर्षों में सबसे ज्यादा गर्म एवं सूखा रहा जबकि आमतौर पर इसे जोरदार बारिश का समय माना जाता है। इसके फलस्वरूप फसलों की प्रगति बाधित हुई और उसकी औसत उपज दर तथा पैदावार घटने की आशंका है।
बेशक खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र पिछले साल के लगभग बराबर रहा लेकिन अनेक क्षेत्रों में वर्षा के अभाव एवं ऊंचे तापमान से फसलों का ठीक से विकास नहीं हो पाया। वैसे पिछले साल के मुकाबले चालू खरीफ सीजन के दौरान दलहन फसलों (तुवर, उड़द एवं मूंग), ज्वार, मूंगफली एवं कपास आदि के बिजाई क्षेत्र में गिरावट आई है जबकि इसके प्रमुख उत्पादक इलाकों में वर्षा का वितरण आसमान रहा है।
अब सितम्बर माह के दौरान महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं गुजरात जैसे राज्यों में मूसलाधार बारिश होने लगी है जिससे खेतों में पानी भरने लगा है। अगैती बिजाई वाली जो फसलें परिपक्व होकर कटाई-तैयारी के चरण में पहुंच गई है उसे इस जोरदार बारिश से नुकसान हो सकता है। लेकिन पिछैती बिजाई पर भी फसल को इस वर्षा से राहत मिलने की उम्मीद है।
पूर्वी भारत में बिहार, झारखंड, मणिपुर एवं मिजोरम एक बार फिर सूखे की चपेट में फंस गए हैं जबकि दक्षिणी प्रायद्वीप में केरल और कर्नाटक में बारिश का अभाव है।
वहां फसलों की हालत उत्साहवर्धक तो दूर, संतोषजनक भी नहीं है। केन्द्र सरकार का ध्यान धान, दलहन, तिलहन एवं गन्ना की फसल पर केन्द्रित है क्योंकि चावल, दाल एवं चीनी का भाव काफी ऊंचा एवं तेज हो गया है। आगे इसमें कुछ और तेजी आने की संभावना है। खाद्य तेलों में अभी ज्यादा तेजी नहीं है जो सरकार एवं आम उपभोक्ताओं के लिए राहत की बात है।