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उत्तर-पूर्व मानसून की बारिश कम होने से रबी कालीन दलहनों की बिजाई घटी

प्रकाशित 02/02/2024, 09:29 pm
उत्तर-पूर्व मानसून की बारिश कम होने से रबी कालीन दलहनों की बिजाई घटी

iGrain India - नई दिल्ली । वर्ष 2023 के दौरान भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितम्बर) के बाद उत्तर-पूर्व मानसून (अक्टूबर-दिसम्बर) के दौरान भी सामान्य औसत से कम बारिश हुई जिससे खरीफ तथा रबी सीजन में दलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र घट गया।

देश में करीब 75 प्रतिशत वर्षा दक्षिण-पश्चिम मानसून सीजन के दौरान होती है। शीतकालीन मानसून भी निराशाजनक रहा लेकिन फिर भी किसानों ने दलहन फसलों की खेती में काफी दिलचस्पी दिखाई। इसके फलस्वरूप मसूर एवं मटर का रकबा गत वर्ष से आगे निकल गया लेकिन चना, मूंग एवं उड़द का क्षेत्रफल पीछे रह गया। चना के बिजाई क्षेत्र में ज्यादा गिरावट दर्ज की गई।

हालांकि भारत में कुल वार्षिक वर्षा में उत्तर-पूर्व मानसून का योगदान महज 11 प्रतिशत रहता है मगर फिर भी रबी कालीन फसलों के लिए इसे अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है।

देश में शेष वर्षा मानसून से आगे के पूर्व यानी मार्च-मई के दौरान होती है। रबी कालीन दलहन फसलों का कुल क्षेत्रफल गत वर्ष से करीब 7 प्रतिशत पीछे रह गया। 

देश के 150 प्रमुख बांधों- जलाशयों में भी पानी का स्तर काफी घट गया है जिससे रबी फसलों की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। मसूर के क्षेत्रफल में 6 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ क्योंकि एक तो सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भारी बढ़ोत्तरी कर दी और दूसरे, इसकी घरेलू मांग काफी मजबूत बनी हुई है।

फसल की हालत संतोषजनक है और इसकी उपज दर सामान्य औसत से ऊंची रहने की उम्मीद है। इसके फलस्वरूप 2023-24 के वर्तमान रबी सीजन में मसूर का घरेलू उत्पादन बढ़कर एक नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश जैसे शीर्ष उत्पादक राज्यों में मसूर की फसल अच्छी हालत में बताई जा रही है। 

एक अग्रणी विश्लेषक फर्म ने चालू रबी सीजन के दौरान भारत में मसूर का कुल उत्पादन तेजी से उछलकर 17.10 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान लगाया है जो 2017-18 सीजन के रिकॉर्ड उत्पादन 16.20 लाख टन से भी करीब एक लाख टन ज्यादा है।

रिकॉर्ड उत्पादन तथा मजबूत बकाया स्टॉक के बावजूद भारत में मसूर का आयात जारी रहेगा क्योंकि इसकी खपत ज्यादा होती है। लेकिन कनाडा एवं ऑस्ट्रेलिया में उत्पादन घटने से भारत में मसूर का आयात 12.50 लाख टन के आसपास सिमट सकता है जबकि पहले यह 15-16 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा था।  

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