iGrain India - नई दिल्ली । अमरीकी कृषि विभाग (उस्डा) के मुख्य अर्थशास्त्री का कहना है कि अच्छे एवं स्थायी खरीदार प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता होना आवश्यक है अन्यथा खरीदार किसी और दिशा में जा सकते हैं।
उनका इशारा भारत की तरफ था जहां सरकार ने टुकड़ी चावल, गैर बासमती सफेद चावल, गेहूं एवं इसके उत्पाद, चीनी तथा प्याज आदि के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगा रखा है।
पिछले दो वर्षों के दौरान भारत की आयात-निर्यात नीति में जबरदस्त बदलाव हुए हैं जिससे वैश्विक बाजार पर काफी असर पड़ा है। एक तरफ सरकार ने दलहनों एवं खाद्य तेलों के आयात की नीति को अत्यन्त उदार एवं सरल बना दिया है तो दूसरी ओर प्रमुख खाद्यान्न तथा चीनी के निर्यात को रोकने का प्रयास किया है।
इससे अंतर्राष्ट्रीय निर्यात बाजार में एक स्थायी आपूर्तिकर्ता देश के तौर पर भारत की विश्वसनीयता में कमी आई है और इससे उन देशों को भारी कठिनाई हो रही है जो इन उत्पादों की खरीद के लिए मुख्यत: भारत पर ही निर्भर थे।
हालांकि भारत सरकार का तर्क है कि घरेलू प्रभाग में आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों में तेजी पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से निर्यात प्रतिबंध का निर्णय लिया गया लेकिन उस्डा के अर्थशास्त्री का कहना है कि दीर्घकालीन साख, प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता की हानि के सापेक्ष अल्प कालीन लाभ का कोई महत्व नहीं है। अमरीकी आपूर्तिकर्ता विश्वसनीय होते हैं।
वहां किसी कृषि उत्पाद का अभाव होने पर तत्काल आयात का विकल्प खुला रहता है जिससे आम लोगों को ज्यादा कठिनाई नहीं होती है। भारत सरकार की नीति उससे अलग है।
भारत से चावल एवं चीनी का निर्यात हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है और इससे एशिया तथा अफ्रीका के अनेक देशों को काफी राहत भी मिली लेकिन जब एकाएक इसके निर्यात को बंद करने की घोषणा हुई तो आयातक देशों को भारी धक्का लगा।