iGrain India - नई दिल्ली । चालू वर्ष के दौरान खरीफ फसलों की बिजाई उत्साहवर्धक ढंग से आरंभ नहीं हो पाई क्योंकि एक तो दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन में एक सप्ताह की देरी हो गई और दूसरे, इसकी गतिशीलता भी कमजोर रही।
देश के अधिकांश भागों में यह सही समय पर शायद नहीं पहुंच पाएगा। वैसे मौसम विभाग को उम्मीद है कि जल्दी ही मानसून की रफ्तार, तीव्रता एवं सघनता में इजाफा होगा और खरीफ फसलों की बिजाई की गति बढ़ जाएगी।
बिजाई की अब तक की धीमी रफ्तार से यह चिंता उत्पन्न होने लगी कि इस बार कुल मिलाकर कई फसलों की खेती पिछड़ जाएगी या इसकी बिजाई का अभियान नियत आदर्श समयावधि से आगे भी चलता रह सकता है जिससे फसलों की औसत उपज दर प्रभावित होने की आशंका है।
16 जून तक गन्ना को छोड़कर अन्य खरीफ फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र 49.30 लाख हेक्टेयर पर पहुंच सका जो पिछले साल से कुछ अधिक है। मुख्यत: बाजरा के रकबे में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है जबकि कई फसलों का क्षेत्रफल गत वर्ष से पीछे चल रहा है।
मौसम विभाग के अनुसार दक्षिण-पश्चिम मानसून की बारिश 1-16 जून के दौरान सामान्य स्तर से 47 प्रतिशत कम हुई और देश के विभिन्न भागों में बारिश की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही है। वहां मानसून अभी नहीं पहुंचा है जबकि इसे पहले ही पहुंच जाना चाहिए था।
लेकिन अच्छी खबर यह है कि मौसम विभाग ने 20 जून से मानसून की हालत में काफी सुधार आने का अनुमान व्यक्त किया है। यदि यह अनुमान सही साबित होता है तो खासकर धान एवं कपास तथा दलहन-तिलहन फसलों के बिजाई क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होने लगेगी।
उल्लेखनीय है कि खरीफ सीजन के दौरान दलहन-तिलहन फसलों के संवर्ग में अरहर, तुवर, मूंग, सोयाबीन तथा मूंगफली आदि की खेती बड़े पैमाने पर होती है।
इसके अलावा मक्का, ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे अनाजों का भी भारी उत्पादन खरीफ सीजन में ही होता है। गन्ना, कपास एवं पटसन जैसी औद्योगिक या नकदी फसलें भी खरीफ सीजन में ही उपजाई जाती हैं। अरंडी भी इसी सीजन में होती है।